Tuesday, June 12, 2012
Saturday, September 3, 2011
मीडिया क्या है ये?
मैंने अपने करियर का एक साल मीडिया से जोड़ कर देखा। लेकिन इस एक साल में मैंने वो सब देखने और समझने की कोशिश की जिसके जवाब अक्सर हमें मीडिया के दिग्गज हमारी कक्षा में अलग-अलग ढंग से दिया करते थे। लेकिन जितना समझा उतना ही इसकी गहराइयों में उतरता गया। लेकिन आज तक मैं कुछ सवालों के जवाब नहीं ढूंढ़ पाया। उदाहरण के लिए कि कुछ लोग अपने वरिष्ठ अधिकारियों की इतनी चम्मचागिरी क्यों करते है? जिसे देख कर लगता है कि क्या कोई इंसान इतना गिर सकता है कि उसे अपने आत्मसम्मान का ही ख्याल न रहे। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई में जितना देखा, सुना और पढ़ा वो सब यहां आकर खत्म सा होता दिखाई दे रहा है। हमारे कुछ शिक्षकों ने जो हमें बताया और सिखाया था मानो ऐसा लगता है उन्होनें केवल हमें भ्रमित किया था। जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। जो सोच कर मैं और मेरे कुछ साथी इस क्षेत्र से जुड़े थे उस सोच को यहां बैठे दिग्गजों ने खत्म कर दी है या फिर कहे कि हमारा नजरिया ही बदल दिया है। यहां पर आपके अंदर काबलियत नहीं देखी जाती बल्कि ये देखा जाता है कि आप मक्खन कितना अच्छा लगाना जानते है। अब मुझे ऐसा लगने लगा है कि शायद मैं और मेरे कुछ दोस्त इस क्षेत्र के लिए बने है। मैं अपने दोस्तों के बार में तो नहीं कहूंगा हां अपने बार में जरूर कहूंगा कि बहुत जल्द मैं इस क्षेत्र को छोड़ दूंगा। क्योंकि आज तक जो हमने सीखा, पढ़ा उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता कि मैं आगे इस क्षेत्र में सफल हो पाउंगा। हां इस क्षेत्र से जुड़ी कुछ खट्टी-मिठ्ठी यादे जरूर मेरे जहन में रहेंगी।
Wednesday, April 28, 2010
चंचल मन
ये कहानी एक आठवी कक्षा मे पढ़ने वाले छात्र की हैं। जो मन ही मन अपनी ही कक्षा मे पढ़ने वाली एक लड़की से प्यार करने लगा पर वो यह समझ नही पा रहा था कि उसे क्या हो गया हैं। वो उस लड़की से कुछ न कह पाता था न ही उससे कभी उसने प्यार का इज़हार किया। उसने कई बार अपने दोस्तों से इस बारे मे बात की लेकिन हमेशा ही निराशा हाथ लगी। उस लड़के और लड़की मे दोस्ती तो पहले से ही थी। फिर फ़ोन पर बातों का सिलसिला शुरू हो गया। उस लड़के का एक बहुत अच्छा दोस्त था जो उसके बारे मे सब जानता था। इस लड़के को यह नही पता था कि यही दोस्त आगे चलकर उसी को धोख़ा देगा। समय बितता गया। दोनों के बीच बातों का दौर वक्त के साथ कम होता चला गया। वो लड़का ये समझ नही पा रहा था कि क्या बात हैं। कुछ समय बाद इसे यह पता चला कि उस लड़की का प्रेम प्रसंग उसी के दोस्त के साथ चल रहा हैं। हैरानी की बात तो यह थी कि वो लड़की इस लड़के को अपना भाई मानती थी और इसी के कहने पर उसने उस लड़के से बात करनी बंद कर दी थी। फिर अचानक एक दिन लड़की ने उस लड़के को फ़ोन किया तो वो हैरान रह गया कि लगभग एक साल के बाद उस लड़की ने फ़ोन किया। बात हुई तो लड़का बीच मे ही भावुक हो गया और उसने फ़ोन काट दिया। तब से उन दोनों के बीच दूरिया और बढ़ गई। अब बस एक दूसरे के बर्थ डे पर ही उनकी बात होती हैं। बीच मे ये भी पता चला की दोनों का ब्रेकअप हो चुका है लेकिन फिर भी उस लड़के ने बात आगे नही बढ़ाई। अब तक शायद वो लड़की भी ये समझ चुकी थी कि ये लड़का उससे प्यार करता हैं पर उसने भी आगे कोई बात नही की। क्योकि वो इस बात से शर्मिंदा थी कि किसी और के कहने पर उसने उस लड़के से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे।
Thursday, April 22, 2010
मीडिया
मीडिया का क्षेत्र एक चुनौती भरी क्षेत्र हैं। इसमे कब क्या हो जाए किसी को कुछ पता नही हाता। इसे देश के संविधान का चौथा स्तंभ भी माना गया हैं। इसके बिना तो न जाने हमारे देश की क्या हालत होगी। देश ही क्यों बल्कि पूरे विश्व मे कोई भी व्यक्ति बिना इसके अपना आप को अधूरा मानता हैं। जो छात्र इसे अपने जीवन का लक्ष्य मानकर आगे बढ़ रहे। वो शायद इस बात से अनजान है कि उन्हे इस राह मे न जाने कितनी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन जो मुसिबतों को पार करके आगे बढ़ता है वो ही सिकंदर कहलाता हैं। अंत मे मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि जो कोई भी व्यक्ति इस क्षेत्र मे आए बहुत सोच समझकर आए। किसी के कहने या किसी की देखा देखी न आए जैसा आमतौर पर देखा जाता है कि फलां कर रहा है तो हम भी करेंगे। आप सभी पाठकों से अनरोध है कि अपने या अपने बच्चो के भविष्य से खिलवाड़ न करे। अपने हुनर को पहचानिएं।
Thursday, January 21, 2010
ज़िन्दगी कैसी है पहेली?
ये ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है फिर भी हम इसमें तन्हा क्यों है। शायद हम इसमें कही गुम हो गए है। हमे इसका एहसास करते रहना चाहिए कि ये ज़िन्दगी वाक्यही हसीन है। इसलिए हमे शायद अपने हर गम को भुला कर ज़िन्दगी के हर लम्हे को जीना चाहिए। ज़िन्दगी खुदा का ही खूबसूरत नज़राना है। आप अपनी इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में से कुछ फुरसत के पल निकालिए और अपने दिल की हर बात को अपनी ज़िन्दगी में खूबसूरत फूलो की तरह बिखेर डालियें।
Monday, January 11, 2010
दिल वालो की दिल्ली
कहने को तो हम दिल वालो की दिल्ली में रहते है। लेकिन क्या दिल्ली वालो के पास सच में दिल होता है। यहाँ पर तो किसी के पास इतना भी वक़्त नहीं है की किसी की बात भी सुन ले और इस बीच कोंई उत्तर प्रदेश या बिहार से आ जाये तो बस कहने ही क्या। वो तो उस व्यक्ति को किसी चिड़िया घर के जानवर से कम नहीं समझते। वो उसे केवल हँसी का पात्र समझते है। दिल्ली वालो को अब तो सुधारना ही चाहिए। हांलाकि मै भी एक दिल्ली वासी हूँ। मै फिर भी इस बात क़ी घोर निंदा करता हूँ। हमे यह सोचना चाहिए की कभी हमे भी उनकी ज़मीन या उनके शहर में जाना पड़ सकता है। हमे हर व्यक्ति को समान समझना चाहिए। क्योंकि भगवान की नज़र में हम सब एक है।
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